चित्तोरगढ़ किले की जानकारी हिंदी मैं
Chittorgarh Carh Ka Kila Ka Itihas चित्तौड़गढ़ दुर्ग का इतिहास यह दुर्ग दानव दुर्ग को छोड़कर सभी श्रेणी में शामिल है इस दुर्ग को चित्रकूट शिरमोर दुर्ग , राजस्थान का गोरव , दक्षिणी-पूर्वी द्वार , दुर्गो का दुर्ग कहते है अब्दुल -फाजल ने इस दुर्ग के बारे में कहा है गढ़ तो चित्तोडगढ बाकी सब गठेया यह दुर्ग गंभीरी व बेडच नदी के संगम बना हुआ है राजस्थान का छेत्रफल में सबसे बड़ा दुर्ग है
जिसकी लम्बाई 8 किलोमीटर तथा चोडाई 2 किलोमीटर है यह दुर्ग मेसा पठार पर स्थित है जिसकी आकरती व्हेल मछली के समान है दुर्ग का निर्माण 7 वी सदी में चित्रांग मोर्य ने करवाया था राणा कुम्भा को इस दुर्ग का आधुनिक निर्माण माना जाता है दुर्ग delhi से मालवा व गुजरात के रास्ते पर स्थित है
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जिसका सामरिक महत्व सर्वाधिक है यह यह एकमात्र दुर्ग है जिसमें kurshi होती है यह दुर्ग 21 जून 2013 को विश्वधरोवर सूचि में शामिल किया गया !
1. इस दुर्ग में जयमल, फत्ता, कल्ला राठौर,रेदास, बाघसिंह की छात्रिया है !
2. घी -तेल बावड़ी कातण बावड़ी ,जयमल फत्ता तालाब, गोमुख कुण्ड हाथीमुंड , सूर्यकुण्ड भीमतल कुण्ड, आदि दुर्ग में स्थित तालाब व बावड़ी है !
3. तुलजाभवानी ,पतालेस्वर, सतबिस देवरी , संगर चंवरी मन्दिर इस मन्दिर का मिर्माण वेलका ने करवाया था जहाँ कुम्भा की पुत्री रमा बाई की मंडलिक से विवाह हुआ (चोकी मेहरानगढ़ में है जहाँ राठोड़ो का राजतिलक होता था ), कुम्भास्वामी /शिवमंदिर (यह पंचायतन शेली में बना है ) अद्बुत का मन्दिर , वराह मन्दिर मीरामंदिर मोकल मन्दिर (इस मन्दिर का निर्माण मालवा के राजा भोज ने करवाया )
4. दुर्ग ने पदमिनि महल , गोरा बादल , जयमल -फत्ता की हवेलिया पुरोहितो की हवेलिया ,कुम्भामहल ,नवकोटा महल , (यहाँ पंनाधाये ने अपने पुत्र चन्दन का बलिदान दिया) फतेह्महल भामाशाह की हवेली , सलुम्बर हवेली , रामपुरा हवेली, आहाडा, हिंगलू का महल ,रतनसिंह महल , आल्हा काबरा की हवेली ,राव रणमल की हवेली प्रमुख है !
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विजय स्तम्भ के बारे मैं जानकारी
यह चित्तोड दुर्ग में स्थित 122 फीट ऊँची 9 मंजिला इमारत है जिसका निर्माण 1440-48 मैं राणाकुम्भा ने सारंगपुर (मालवा ) विजय (1437) के उपलक्ष में करवाया इसमें 157 सिढ़ीयां है व आधार की चोडाई 30 फुट है इसकी आठवी मंजिल पर कोई मूर्ति नही है इस इमारत का शिल्पी जेता था जिसका सहयोग नाथा पामा पूंजा ने किया इसकी प्रथम मंजिल पर कुम्भास्वामी विष्णु मन्दिर है जिस कारण उपेन्द्र नाथ डे ने इसे विष्णु द्वाज कहा है
इसकी तीसरी मंजिल पर 9 बार अरबी भाषा में आलाह शब्द लिखा है इसके चारो और मुर्तिया होने के कारण इसे मुर्तिया का अजायबघार कहते है यह राजस्थान की प्रथम इमारत है जिस पर 15 अगस्त 1949 को एक रुपये का डाक टिकट जारी किया गया है यह राजस्थान पुलिस व माध्यमिक शिक्षा बौर्ड का प्रतिक चिन्हे इसकें निर्माण में 90 लाख का खर्चा आया ! इसकी 9 वी मंजिल पर अत्री महेश ने (अभिकवि) मेवाड़ी भाषा में कीर्ति स्तम्भ प्रसस्ती की रचना की ! जिसमे राणा कुम्भा की विजयों का वर्णन है !
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विजय स्तंभ के कुछ उपनाम –
1. कुटम्बमीनार से सेस्ठे -कर्नल जेम्स टोड 2. रोम के टार्जन के समान -फग्रुसन 3.हिन्दू प्रतिमा शास्त्र की अनुपम निधि - आर पि व्यास 4. संगीत की भव्य चित्रशाला - डॉ. सीमा राठौड 5.पोराणिक देवताओ का अमूल्य कोष- गौरीशंकर हीरानंद ओझा 6. लोकजीवन का रंगमंच-गोपी नाथ शर्मा 7. विष्णु धव्ज - उपेन्द्रनाथ डे