Biography Of Pabuji पाबूजी का जीवन परिचय 

By | June 10, 2022
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पाबूजी का जीवन परिचय 

 

Biography Of Pabuji पाबूजी का जीवन परिचय :- पाबूजी महराज का जन्म धान्धलजी राठौड के यहाँ 1239 ईं में फलौदी तहसील (जोधपुर) के कोलू गाँव में जन्म हुआ | पाबूजी राठौड राजवंश से सम्बन्धित थे |

इतिहासकार मुहणोत नैणसी महाकवि मोडगी आशिया तथा लोगो में प्रचलित मान्यता के अनुसार पाबूजी का जन्म वर्तमान बाड़मेर से आठ कोस आगे खारी खाबड़ के जून नामक ग्राम में अप्सरा के गर्भ में हुआ |

वीरता , पत्तिज्ञापालन ,त्याग ,शरणागत वत्सलता एवं गो-रक्षा हेतु बलिदान होने के कारण जनमानस इन्हे लोक देवता के रूप में पूजता है | इनका मुख्य पूजा स्थल कोलू (फलोदी )में है | जहाँ प्रतिवर्ष इनकी स्मृतिमें मेला लगता है |इनका प्रतीक चिन्ह हाथ में भाला लिए अश्वारोही के रूप में प्रचलित है |

पाबूजी का विवाह 

पाबूजी का विवाहअमरकोट के सूरजमल सोढा की पुत्री सोढ़ी के साथ हुआ था | विवाह करने के लिये पाबूजी ने देवलजी चारणी से उनकी कालवी नामक घोड़ी ले गये थे। विवाह के मध्य पाबूजी राठौड़ ने फेरे लेते हुए सुना कि प्रतिद्वंद्वी बहनोई जायल (नागोर ) नरेश जिंदराव खिंची नामक व्यक्ति ने देवलज चारणी की गायों को घेर लिया। देवल ने पाबूजी से गायो को छुड़ाने की प्रार्थना की |

तीन फेरे लेने के पश्चात चोथे फेरे से पूर्व ही वे देवल चारणी की केसर कामली घोड़ी पर सवार होकर गायो की रक्षार्थ रवाना हो गए | पाबूजी ने देवलजी को उनकी गायों की रक्षा का वचन दिया था |कड़े संघर्ष में 1276 ई. में पाबूजीअनेक साथियों के साथ गायों की रक्षा करते-करते वीरगति को प्राप्त हो गये।

पाबूजी की फड़

पाबूजी के यशगान में ‘पावड़े’ (गीत) गाये जाते हैं पाबूजी की ऊँटों के देवता के रूप में पूजा की जाती है मारवाड़ में सर्वप्रथम ऊंट लाने का श्रेय पाबू जी को है व मनौती पूर्ण होने पर फड़ भी बाँची जाती है। ‘पाबूजी की फड़’ पूरे राजस्थान में विख्यात है

ऊँटों के स्वस्थ होने पर भोपे -भोपियो द्वारा “पाबूजी की फड बजाई जाती है जिसे भोपे बाँचते हैं। ये भोपे विशेषकर थोरी जाति के होते हैं। फड़ कपड़े पर पाबूजी के जीवन प्रसंगों के चित्रों से युक्त एक पेंटिंग होती है।

भोपे पाबूजी के जीवन कथा को इन चित्रों के माध्यम से कहते हैं और गीत भी गाते हैं। इन भोपों के साथ एक स्त्री भी होती है, जो भोपे के गीतोच्चारण के बाद सुर में सुर मिलाकर पाबूजी की जीवन लीलाओं के गीत गाती है। फड़ के सामने ये नृत्य भी करते हैं
ये गीत रावण हत्था पर गाये जाते हैं, जो सारंगी के जैसा वाद्य यन्त्र होता है।

‘पाबूजी की फड़’ लगभग 30 फीट लम्बी तथा 5 फीट चौड़ी होती है। इस फड़ को एक बाँस में लपेट कर रखा जाता है। पाबूजी के अलावा अन्य लोकप्रिय फड़ ‘देवनारायण जी की फड़’ होती है। ग्रामीण जनमानस इन्हे लक्ष्मणजी का अवतार मानता है |

पाबूजी का प्रतीक चिन्ह 

इनका प्रतीक चिन्ह हाथ में भाला लिए अश्‍वारोही के रूप में प्रचलित है |

पाबूजी के बारे में अन्य महत्वपूर्ण तथ्य

इन से सम्बन्धित गीत ‘ पाबूजी के पवाड़े‘ माठ वाद्य के साथ नायक एवं रेबारी जाति के द्वारा गाये जाते है ।
पाबूजी केसर कालमी घोडी एवं बाईं और झुकी पाग के लिए प्रसिद्ध है । पाबूजी का बोध चिन्ह भाला लिये अश्वारोही है ।
इनका कोलूमण्ड में प्रमुख मंदिर जहाँ प्रतिवर्ष चैत्र अमावस्या को मेला भरता है ।

मुस्लिम सुल्तान दूदा सूमरा को पाबूजी ने युद्ध में परास्त किया , क्योंकि यह एक हिन्दू द्रोही व हिन्दुओं पर अत्याचार करने वाली प्रवृति का शासक था । पाबूजी अल्प आयु में ही छुआछूत का विरोध करते थे । पाबूजी को ‘ प्लेग रक्षक/हाड-फाड वाले देवता/गायों के मुक्तिदाता’ के रूप में भी पूजा जाता है । विवाह के साढे तीन फेरे लेने के बाद ही गायों को बचाने पहुँचे ।

बहनोई जायल (नागौर के शासक) जींदराव खींची से युद्ध लड़ते हुए 1276 ईं. में देंचूँ गांव (जोधपुर) में 24 वर्ष की आयु में वीरगति को प्राप्त हुए । इसीलिए पाबूजी के अनुयायी आज भी विवाह के अवसर पर साढ़े तीन फैरे ही लेते है ।

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