कुम्भलगढ़ का किला
Kumbhalgarh kile ka itihas कुम्भलगढ़ किले का इतिहास कुम्भलगढ़ का दुर्ग राजसमन्द जिले के सादडी गाँव के पास अरावली पर्वतमाला की 13 चोटियों से घीरी जरगा पहाड़ी पर मेवाड़ और मारवाड़ की सीमा पर स्थित इस दुर्ग का निर्माण सम्राट अशोक के दुसरे पुत्र संप्रति के द्वारा तीसरी शताब्दी में बनवाए गए दुर्ग के अवशेषों पर महाराणा कुम्भा ने विक्रम संवत 1505(144”ई) में नागौर विजय के उपलक्ष्य में कुम्भलगढ़ या कुम्भालमेंरू दुर्ग की नीव रखी जिसका पूर्ण निर्माण कुम्भा के शिल्पी -वास्तुकार मंडन (गुजराती) की देखरेख में विक्रम संवत 1515 (1458 ई.) में हुआ था यह दुर्ग गिरी दुर्ग की श्रेणी में आता है
कुम्भलगढ़ के बारे मैं जानकारी हिंदी मैं
कहते है कि कुम्भा ने अपनी पिर्य महारानी कुम्भल देवी के नाम पर इस किले का नाम कुम्भलगढ़ रखा इस दुर्ग को कमल मीर व मचेन्द्रपुर आदि नामो से भी जाना जाता है कुम्भलगढ़ शिलालेख एवं प्रश्ति की रचना कान्हा व्यास ने की है उसके अनुसार कुम्भलगढ़ दुर्ग की समीपवर्ती पर्वत हेल्कुट नील ,हिमावत , गंधमादन निषाद श्वेत इतियादी है दुर्ग समद्रतल से 1087 मीटर ऊँचा व प्राचिर का कुल व्यास 30 किलोमीटर व दुर्ग की प्राचीर की कुल लम्बाई 36 किलोमीटर है इस दुर्ग में जो प्राचीर बनवाई गई इसलिए इसे भारत की महान दीवार (GREAT WALL OF INDIA) कहा जाता है कर्नल जेम्स टोड ने इस दुर्ग की प्राचीर बुर्जो एवं कंगुरो की द्रस्ती से इसकी तुलना एट्रूस्कन से की है
इसमें एक और दुर्ग कटरागढ़ बना हुआ है कटरागढ़ में प्रवेश करने से पहले एक देवी का मन्दिर है इस दुर्ग की आक्रति कटार (तलवार ) के सामने होने के कारण इसे कटारगढ़ कहते है महाराणा कुम्भा यही पर रहकर मेवाड के शासन की देखरेख करता था अत: कतारगढ़ दुर्ग को मेवाड़ की आँख भी कहा जाता था, कटारगढ़ दुर्ग महाराणा कुम्भा का निवास स्थान व कटारगढ़ दुर्ग का बादल महल महाराणा प्रताप का (1540 ई.में ) जन्म स्थान है
कुम्भलगढ़ का प्रवेश दवार:-
दुर्ग मैं प्रवेश करने का पप्रथम द्वार आरेठपोल है दूसरा द्वार हल्लापोल है , जो एक प्रकार से दुर्ग की सुरक्षा की द्रस्ती से रुकावटद्वार या पोल है तीसरा द्वार हनुमान पोल है यहाँ पर हनुमान जी की मूर्ति स्थापित है जो कुम्भा जे नागौर के युद्ध विजय के प्रश्चात नागौर से लाई गयी थी ,
चोथा द्वार विजयपोल है इसी के पास नीलकंठ महादेव का मन्दिर नागर शेली मैं बना हुआ था इस मन्दिर में एक देव प्रतिमा स्थित है जिसका बारह हाथ है इसी के पास उलेखनिये यगवेदी है जिसका निर्माण कुम्भा ने सन 1457 ई . के अत: में करवाया था दुर्ग की प्रतिस्था का यघ इसी वेदी पर हुआ था वर्तमान में इस जगह को आवास (डाक बंगले ) में बदल दिया गया है !
इसी दुर्ग मैं कुम्भाश्याम विष्णु मन्दिर मालिया महल बदल , बादल महल , झालिबाव (बावड़ी ) तथा मामदेव का कुण्ड आदि अन्य स्थल है !
विजयपोल के बाद रामपोल ,भेरवपोल , निम्बुपोल, पाखडापोल , और गणेशपोल आते है