Mehrangarh Fort History In Hindi मेहरानगढ़ किले का इतिहास हिंदी मैं

By | March 8, 2021
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जोधपुर किले की जानकारी हिंदी मैं

Mehrangarh Fort History In Hindi मेहरानगढ़ किले का इतिहास हिंदी मैं इस किला का निर्माण नगर राव जोधा ने अपने शासन काल मैं करवाया था इसकी बनावट महत्पूर्ण तरीके से किया गया यह जोधपुर शहर के धरातल से 112 मीटर की ऊंचाई पर है। यह दुर्ग चारों ओर से अभेद्य प्राचीरों से घिरा हुआ है। दुर्ग की प्राचीरों पर अब भी जोधपुर के महाराजा और जयपुर की सेना के बीच हुए युद्धों के प्रतीक तोप के गोलों के निशान के रूप में अंकित हैं।

किले के बायीं ओर कीरतसिंह सोढा की छतरी है। यह एक योद्धा था जिसने किले की रक्षा के लिए अपनी जान न्योछावर की थी। इसके अलावा फतेहपोल द्वारा का निर्माण महाराजा अजीत सिंह ने मुगलों पर फतेह पाने के बाद कराया था। इन द्वारा पर आज भी तब के युद्धों के निशान बाकी हैं

Mehrangarh Fort History In Hindi मेहरानगढ़ किले का इतिहास हिंदी मैं

Mehrangarh Fort History In Hindi मेहरानगढ़ किले का इतिहास हिंदी मैं

मेहरानगढ़ का प्रमुख संग्रहालय बना 

इनमें 1730 में गुजरात के शासक से लड़ाई में जीती विशाल पालकी भी हैकामयाब अंग्रेजी फिल्म ’डार्क नाइट’ के कुछ हिस्से भी मेहरानगढ़ में फिल्माए जाने के बाद यह हॉलीवुड के लिए भी एक शानदार डेस्टीनेशन बन गया। संग्रहालय में अतीत की महत्वपूर्ण वस्तुओं का जमा किया गया है

मेहरानगढ़ का इतिहास

जोधपुर मेहरानगढ़ दुर्ग को नगर राव जोधा ने बसाया था जिसका यहां 1438 से 1488 तक लंबे समय तक शासन किया। वे रावल के 24 पुत्रों में से एक थे। चारों ओर शत्रुओं से घिरे होने के कारण उन्होंने जोधपुर की राजधानी को किसी सुरक्षित स्थान पर रखा था और और दुर्ग को SAFE की योजना बनाई। वे मानते थे कि मंडोर का किला जोधपुर की सुरक्षा करने के लिए पर्याप्त नहीं है। राव सामरा के बाद उनके पुत्र राव नारा ने जोधपुर की कमान संभाली और पूरे मेवाड़ को मंडोर के छत्र के नीचे सुरक्षित किया। राव जोधा ने राव नारा को दीवान का खिताब दिया था। यह दुर्ग मंडोर से 9 किमी की दूरी पर दक्षिण में भौरचिरैया पहाड़ी पर बनाया था जिसके कारण महल की नींव पड़ जाने के बाद चिरैया को यहां से विस्थापित होना पड़ा। इस पर चिरैया ने यहां हमेशा सूखा पड़ने का श्राप दिया। कहा जाता है उसके बाद कई बरसों तक यहां सूखा पड़ा। तब राव ने एक मंदिर बनाकर श्राप से मुक्ति पाई। इस दुर्ग के बारे में यह भी कहा जाता है कि यहां एक व्यक्ति राजाराम मेघवाल की समाधि थी।  राव जोधा ने राजाराम के परिजनों से दुर्ग के एक हिस्से पर राजाराम के परिजनों के हक का वादा किया था। यह हक आज भी अदा किया जा रहा है और दुर्ग के एक हिस्से ’राजाराम मेघवाल गार्डन’ में आज भी उसके वंशज निवास करते हैं।

मेहरानगढ दुर्ग की संस्कृत के राज  

इस दुर्ग का नाम मिहिरगढ रखा। लेकिन राजस्थानी बोली में स्वर मिहिरगढ़ से मेहरानगढ हो गया। राठौड़ अपने आप को सूर्य के वंशज भी मानते हैं। किले के मूल भाग का निर्माण जोधपुर के संस्थापक राव जोधा ने 1459 में कराया। इसके बाद 1538 से 1578 तक शासक रहे जसवंत सिंह ने किले का विस्तार किया। किले में प्रवेश के लिए सात विशाल द्वार इसकी शोभा हैं। 1806 में महाराजा मानसिंह ने जयपुर और बीकानेर पर जीत के उपलक्ष में दुर्ग में जयपोल का निर्माण कराया। इससे पूर्व 1707 में मुगलों पर जीत के जश्न में फतेलपोल का निर्माण कराया गया था। दुर्ग परिसर में डेढ कामरापोल, लोहापोल आदि भी दुर्ग की प्रतिष्ठा बढाते हैं। दुर्ग परिसर में सती माता का मंदिर भी है। 1843 में महाराजा मानसिंह का निधन होने के बाद उनकी पत्नी ने चिता पर बैठकर जान दे दी थी। यह मंदिर उसी की स्मृति में बनाया गया। इस दुर्ग का अंदर का नजारा बहूत सुन्दर लगता है मन को मोहक लेता है दुर्ग का राज किले के अंदर कई शानदार महल और स्मारक बने हुए हैं इस दुर्ग मैं हाथी घोडा पेड़ पोधा आदि है इस किले का संग्रहालय को देखना अपने आप में इतिहास की खिड़की में झांकने जैसा है।यह बहुत आनंद देता है। संग्रहीत वस्तुओं में शाही पोशाकें, युद्ध पोशाकें, पालने, लकड़ी की वस्तुएं, चित्र, वाद्य यंत्र, फर्नीचर, पुरानी तोपें आदि उल्लेखनीय हैं। इस किले की रचना बहुत सोच समज की गयी थी जब बना था

मेहरानगढ दुर्ग के महलों का वर्णन 

शीशमहल:-

राजपूत शैली के स्थापत्य का यह सबसे अच्छा उदाहरण है। मेहरानगढ़ के शीशमहल को अन्य सभी महलों से सबसे बहुत अच्छा माना जाता है। इस महल की सुन्दरता इस दुर्ग से बनी हुई है शीशमहल में छोटे-छोटे शीशों के टुकड़ों को दीवार पर चिपकाकर एक भव्य आकार दिया जाता है। इन शीशों पर एक विशेष प्रकार का पेंट किया जाता था। जिससे शीशों की चमक आंखों में नहीं चुभती थी और ये पर्याप्त रूप से चमक भी देते थे। मेहरानगढ का शीश महल वाकई देखने लायक जगह बनी हुई है।

फूलमहल

फूलमहल महल को महाराजा अभय सिंह ने बनवाया था। फूलमहल का निर्माण मेहरानगढ पर 1724 से 1749 हुआ था कई बार राजा महाराजा यहां नृत्य के कार्यक्रमों का आयोजन भी करते थे और महफिल सजाई जाती थी। जिसमें खुशी के अवसर पर राजपरिवार एकत्र होता था और खुशियां बनाई जाती थी। खुशी जाहिर करने के काम में आने के कारण इस महल की खूबसूरती भी शानदार है।

 

 

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