Panna Dai Ki Kahani पन्ना धाय की कहानी

By | April 18, 2021
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पन्ना धाय बलिदान की कहानी

Panna Dai Ki Kahani पन्ना धाय की कहानी:- पन्नाधाय का जन्म 8 मार्च 1490 मंगलवार को चित्तौड़गढ़ के निकट’माताजी की पांडोली’ नामक गांव में हुआ था पन्ना धाय का वास्तविक नाम पन्ना गूजरी था। पन्ना धाय गूजर जाति की मानी जाती थी बहादुरशाह के आक्रमण के कारण मेवाड़ को अपार जनधन की हानि उठानी पड़ी. सांगा के बाद रतनसिंह शासक बना लेकिन सनः 1531 में उसकी मृत्यु हो गई. 1536 में विक्रमादित्य की हत्या करके मेवाड़ के सिहासन पर अधिकार कर लिया. वह विक्रमादित्य के छोटे भाई उदयसिंह की भी हत्या करके निश्चिन्त होकर राज्य भोगना चाहता था. अपने कर्म धर्म और स्वाभिमान की रक्षा करते हुए कई वीरो ने इस धरती को अपने बलिदान से सींचा है उन्हीं में से एक थी मेवाड़ के राजा उदय सिंह की धाय माँ पन्ना धाय. पन्ना धाय ने उदय सिंह की माँ कर्णावती के वचनो को निभाते हुए उनकी मृत्यु के बाद एक बड़े बलिदान के साथ उदयसिंह की परवरिश की मेवाड़ के राजा राणा संग्राम के वीर योद्धा थे लेकिन उनमे मित्र को शत्रु को परखने की अच्छी परख नहीं थी राणा संग्राम दरबार में अपनी तारीफ सुन किसी पर भी जल्द विश्वास कर लेते थे और उनकी इस दयालुता और भोलेपन का फायदा उठाते हुए उनके साथ उनके एक दुश्मन ने छलावा किया उसका नाम था बनबीर वो मेवास दरबार में एक दासी का पुत्र था और वो छल के साथ चित्तोड़ की गद्दी को हासिल करना चाहता था और अपने इसी मकसद से उसने राणा संग्राम के कई वंशजो की बारी बारी हत्या कर दी

Panna Dai Ki Kahani पन्ना धाय की कहानी

Panna Dai Ki Kahani पन्ना धाय की कहानी

पन्ना धाय कोन मानी जाती थी 

पन्ना धाय के पिता का नाम हरचंद हांकला था जो एक साहसी योद्धा थे इन्होंने राजा राणा संग्राम के साथ कई युद्धों में भाग लिया हरचंद हांकला राणा संग्राम की सेना में लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे हरचंद हांकला एक सवामी भक्त और राष्ट्र भक्ति के गुनी और एक सच्चे योद्धा उनकी पुत्री का धायमाता बनाना एक वीर योद्धा के लिए सबसे बड़ी स्वामी भक्ति थी जब रानी कर्णवती के गर्भ से उदयसिंह का जन्म हुआ था तब से उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया था और बीमार रहने लगी तब रानी कर्णवती के हालात को देख पन्ना धाय को को उदयसिंह की धाय माँ बनाया गया पन्ना धाय ने अपने इस कर्तव्य को एक वीरांगना की तरह निभाया और साबित कर दिया की वो भी जन्म से एक शेरनी है गुर्जर जाति से होने के बावजूद अपने स्वामी के कर्तव्यों को हर परिस्थिति में बड़ी निष्ठा से निभाया Panna Dai Ki Kahani पन्ना धाय की कहानी

पन्ना धाय अपने पुत्र का बलिदान देकर राजकुमार की कैसे जान बचाई

अपने स्वामी कर्तव्य को निभाते हुए अपने पुत्र का बलिदान दे दिया और सारा माजरा देखती रही लेकिन उन्होंने अपनी आखों से एक भी आंसू नहीं निकलते दिया क्योंकि यदि इस बात की खबर बनबीर को लग जाती तो सब उल्ट हो जाता बनबीर के जाने के उन्होंने अपने मरे पुत्र को चूमा और उदयसिंह की रक्षा के लिए उनको सुरक्षित स्थान पर ले जाने के लिए महल से निकल गई दोस्तों स्वामी भक्ति को निभाने के लिए पन्ना धाय ने अपने जिगर के टुकड़े का बलिदान कर दिया और एक स्वामिभक्ति का परिचय दिया और मेवाड़ की एकलौते शासक उदयसिंह की प्राणो की रक्षा की

 

पन्ना धाय को राजकुमार को छुपाने का कोई ठिकाना नही था

महल से निकलने के बाद वो उदयसिंह को लेकर कई एक आसरे के लिए निकल पड़ी लेकिन वो महीनो तक उदयसिंह को लेकर कई दरबारों में भटकी लेकिन क्रूर बनबीर के भय से किसी ने पन्ना धाय को शरण नहीं दी इस दौरान उन्होंने कई राजद्रोहियों की नजर से उदयसिंह की रक्षा की आखिर में उन्हें कुम्भलगढ़ में आश्रय मिला उदयसिंह इसी किले में बड़े हुए और एक किलेदार के रूप में सेवक भी बने जब उदयसिंह की आयु 13 साल थी तब मेवाड़ के उमराओ ने उदयसिंह को अपना राजा मान लिया और उनका राज्याभिषेक कर दिया साल 1542 में वो मेवाड़ के महाराणा बन गए

पन्ना धाय के द्वारा अपने पुत्र का बलिदान 

चित्तौड़ का शासक, दासी का पुत्र बनवीर बनना चाहता था। उसने राणा के वंशजों को एक-एक कर मार डाला। बनवीर एक रात महाराजा विक्रमादित्य की हत्या करके उदयसिंह को मारने के लिए उसके महल की ओर चल पड़ा। उसने उदयसिंह को एक बांस की टोकरी में सुलाकर उसे झूठी पत्तलों से ढककर एक विश्वास पात्र सेवक के साथ महल से बाहर भेज दिया। Panna Dai Ki Kahani पन्ना धाय की कहानी बनवीर को धोखा देने के उद्देश्य से अपने पुत्र को उदयसिंह के पलंग पर सुला दिया। बनवीर रक्तरंजित तलवार लिए उदयसिंह के कक्ष में आया और उसके बारे में पूछा। पन्ना धाय ने अपने पुत्र को पलंग पर सुला कर उसके और संकेत किया और बनवीर ने पन्ना  के पुत्र को उदयसिंह समज कर मार डाला पन्ना ने अपने पुत्र को अपने आँखों के सामने मरता देखती रही और अपने आंसू भी नही बहा पाई ताकि बनवीर को पता ना चले और बनवीर को जाने के बाद पन्ना अपने पुत्र को चूमकर गले लगा लिया और खूब रोई उसके बाद राजकुमार को एक सुरेषित जगह ले जाने का निर्णय ले लिया उन्होंने अपना कर्तवे का पालने हुये मेवाड़ के राजवंस को बचा लिया ऐसी थी पन्ना धाय

 

मेवाड़ के महाराजा की जीवनी 

पन्ना धाय पुत्र की मृत्यु के बाद पन्ना उदयसिंह को लेकर बहुत दिनों तक सप्ताह शरण के लिए भटकती रही और पन्ना को विश्वास था नाजिन आश्रमों पर वो बनबीर के खतरे के डर से कई राजकुल जिन्हें पन्ना को आश्रय देना चाहिए था, उन्होंने पन्ना को आश्रय नहीं दिया। कुम्भलगढ़ में उसे यह जाने बिना कि उसकी भवितव्यता क्या है शरण मिल गयी। उदयसिंह क़िलेदार का भांजा बनकर बड़ा हुआ। तेरह वर्ष की आयु में मेवाड़ी उमरावों ने उदयसिंह को अपना राजा स्वीकार कर लिया और उसका राज्याभिषेक कर दिया।
उदय सिंह 1542 में मेवाड़ के वैधानिक महाराणा बन गए।

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