चौथ का बरवाड़ा मंदिर
Choth Ka Barwada Mandir चौथ का बरवाड़ा मंदिर:- राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले के अंतर्गत आने वाला एक छोटा सा शहर है चौथ का बरवाड़ा वैसे तो यह जगह इतनी प्रसिद नही है लेकिन माता रानी की कृपा इतनी है की कभी भी कमी नही होने दी चोथ के बरवाड़ा गाँव मे माता रानी का मंदिर एक विशाल काय पहाड़ी पर बना हुआ है माता जी दर्शन के लिए सेकड़ों पेड़ियों का सहारा लेना पड़ता है
मंदिर परिसर के इतनी सुविधा है की आपको किसी भी प्रकार की कमी नही होगी अगर आप माता रानी के दर्शन के लिए जा रहे है तो इस मंदिर की काश बात तो यह है की माता रानी के दरबार मे कोई ना कोई अपनी अपनी मनत लेके आता है माता रानी के मंदिर चड़ाई 1000 फीट आँकी गयी है

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बरवाड़ा का इतिहास
चौथ का बरवाड़ा का सम्पूर्ण इतिहास चौथ माता शक्ति पीठ के इर्द गिर्द घूमता है, इस गाँव में चौथ भवानी का भव्य मंदिर है जो अरावली शक्ति गिरि पहाड़ श्रृंखला के ऊपर 1100 फीट की ऊँचाई पर स्थित है, इस मंदिर की स्थापना महाराजा भीमसिंह चौहान ने संवत 1451 में बरवाड़ा के पहाड़ पर की।
वर्तमान चौथ का बरवाड़ा को प्राचीन काल में “बरवाड़ा” नाम से जाना जाता था जो कि रणथम्भौर साम्राज्य का ही एक हिस्सा रहा है, इस क्षेत्र के प्रमुख शासकों में बीजलसिंह एवं भीमसिंह चौहान प्रमुख रहे हैं।
यहाँ का चौथ माता का मंदिर पूरे राजस्थान में प्रसिद्ध है ! चौथ का बरवाड़ा शहर अरावली पर्वत श़ृंखला की गोद में बसा हुआ मीणा व गुर्जर बाहुल्य क्षेत्र है ! बरवाड़ा के नाम से मशहूर यह छोटा सा शहर संवत 1451 में चौथ माता के नाम पर चौथ का बरवाड़ा के नाम से प्रसिद्ध हो गया जो वर्तमान तक बना हुआ है

choth ka lakdi ka mandir
आस पास के गाँव
चौथ का बरवाड़ा तहसील में पड़ने वाले बड़े गाँव इस प्रकार है: चौथ का बरवाड़ा, भगवतगढ़, शिवाड़, झोंपड़ा, ईसरदा, सारसोप, आदि।
बरवाड़ा क्षेत्र के पास चौरू एवं पचाला जो कि वर्तमान में गाँव बन गए हैं वो प्राचीन काल में घनघौर जंगलों में आदिवासियों के ठहरने के प्रमुख स्थल थे।
चौथ माता की प्रथम प्रतिमाका अनुमान चौरू जंगलों के आसपास माना जाता है। एक किंवदंती के अनुसार कहाँ जाता है कि प्राचीन काल में चौरू जंगलों में एक भयानक अग्नि पुंज का प्राक्ट्य हुआ, जिससे दारूद भैरो का विनाश हुआ था।
इस प्रतिमा के चमत्कारों को देखकर जंगल के आदिवासियों को प्रतिमा के प्रति लगाव हो गया और उन्होंने अपने कुल के आधार पर चौर माता के नाम से इसकी पूजा करने लगे, बाद मे चौर माता का नाम धीरे धीरे चौरू माता एवं आगे चलकर यही नाम अपभ्रंश होकर चौथ माता हो गया। कहाँ जाता है
कि इस माता को सर्वप्रथम चौर अर्थात कंजर जाति के लोगों ने अपनी कुलदेवी के रूप में पूजा था, बाद में आदिवासियों ने भी इसे ही अपनी आराध्या देवी के रूप में माना जो कि मीणा जनजाति से संबंधित थे। यही कारण रहा है कि चौथ माता को आदिवासियों मीणाओं की कुलदेवी के रूप में जाना जाने लगा।

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वर्षों बाद चौथ माता की प्रतिमा चौरू के विकट जंगलों से अचानक विलुप्त हो गई, जिसका परमाण सही रूप से कहना बड़ा मुश्किल है, मगर इसके वर्षों बाद यही प्रतिमा बरवाड़ा क्षेत्र की पचाला तलहटी में महाराजा भीमसिंह चौहान को स्वप्न में दिखने लगी,
बरवाड़ा मैं मेला
माता रानी के दरबार मैं यू तो हमेशा सरधालु ओ का मेला लगा रहता है लेकिन जायदा भीड़ तो नवरातराओ के समय होती है इस मंदिर मैं बहुत दूर दूर तक लोग माता रानी के दर्शन करने के लिए आते है